क्या सच है ? क्या झूठ है ?
मयंक पांडेय द्वारा रचित सच और झूठ को तलाशती यह कविता - काव्यनामा क्या सच है ? क्या झूठ है ? क्या सच है ? क्या झूठ है ? आओ चलो सोचे , क्या जिसे तुम मानते हो वो सच या जिसे नही मानते वो झूठ है। शायद , वो झूठ हो , जिसे तुम देखते हो और वो सच जिसे तुम नही देख पाते वो सच भी कितना सच है जिसे तुम देखकर भी झूठ मान जाते और वो झूठ भी कितना झूठ जिसे तुम बिना देखे सच मान जाते ये सच क्या है , की हम अधूरे है इसलिए पूरे है या झूठ है , वो तस्वीर जिसे तुम खीचते हो यादे संजोने के लिए आगे चलकर बीते किस्से सुनाने के लिए ये भी सोचना , ये जो अकेलापन है , ये सच हो और वो भीड़ जो तुम्हारे साथ है वो झूठ हो ये भी हो कि वो पूरी नदी झूठ है और वो एक बूंद सच है , जिसे तुमने महसूस किया हो अगर महसूस करना सच है तो तुम , तुम हो