क्या सच है ? क्या झूठ है ?

मयंक पांडेय द्वारा रचित सच और झूठ को तलाशती यह कविता - काव्यनामा


 क्या सच है? क्या झूठ है?
आओ चलो सोचे, क्या जिसे तुम मानते हो वो सच
या जिसे नही मानते वो झूठ है।

शायद, वो झूठ हो, जिसे तुम देखते हो
और वो सच जिसे तुम नही देख पाते
वो सच भी कितना सच है जिसे तुम देखकर भी झूठ मान जाते
और वो झूठ भी कितना झूठ जिसे तुम बिना देखे सच मान जाते

ये सच क्या है, की हम अधूरे है इसलिए पूरे है
या झूठ है, वो तस्वीर जिसे तुम खीचते हो यादे संजोने के लिए
आगे चलकर बीते किस्से सुनाने के लिए

ये भी सोचना, ये जो अकेलापन है, ये सच हो
और वो भीड़ जो तुम्हारे साथ है वो झूठ हो
Kavyanaama sidwanshu

ये भी हो कि वो पूरी नदी झूठ है
और वो एक बूंद सच है, जिसे तुमने महसूस किया हो
अगर महसूस करना सच है तो तुम, तुम हो


वो दूर का रास्ता नजदीक हो ये सच हो सकता है
और ये झूठ की कोई कहे ये रास्ता तुम्हारे मंज़िल को नही जाता है

ये देखना की उस पार क्या है, क्या मर जाना एक सच है
और जीना इस जहां में क्या एक झूठ है

बड़ी पहेली है ये तय करना, क्या कभी झूठ भी सच है
और ये सच भी कभी झूठ है

ये तस्वीर जो तुमने गड़ी है वो सच है और झूठ है
वो सारे रंग जो दूसरों ने बेवजह युही तुम मे भरे है

तुम ये भी समझना कि, किसी का कहा एक झूठ हो सकता है
और, तुम्हारा सुनना एक सच हो सकता है

ये भी सच है कि, तुम हर वक़्त अपनी नींद में हो
और ये झूठ की तुम कभी जागे भी हो

ये भी हो सकता है, ये पूरी कहानी झूठ हो
जिसे तुम पड़ रहे हो, और वो सच जिसे तुमने अभी तक
पड़ा लिखा हो

वो बोझ भी झूठ हो, जिसे तुम अपने ज़ेहन में हर रोज़ उड़ाते हो
और सच हो वो सुकून जिसे तुम फुरसत में ही पाते हो

ये भी एक छलावा हो, की किसी का मुस्कुराना एक झूठ हो
और सच हो उसके भीतर का रोना जिसे वो शायद तुमसे छुपा रहा हो

है तुम अक्सर यहाँ भी दोखा खा जाते हो, किसी के कपड़े किसी के रहन सहन को देखकर
उसे अशिक्षित, असभ्य मान लेते हो
ये मानना तुम्हारा झूठ हो, और सच हो कि वो बस तुमसे अलग ज़िन्दगी जी रहा हो
और तुमसे ज्यादा ज्ञानी और सभ्य हो।
वो भूख और प्यास सच है या वो रोटी झूठ है, जो हर किसी के नसीब में नही
और अगर ये नसीब भी झूठ है, तो हर कोई एक जैसा क्यों नही?

चलो अगर माने, ये सच, ये झूठ कुछ भी नही
तो ये सवाल भी नही, की, क्या सच है? क्या झूठ है
लेकिन, ये जरूरी है कि तुम ये सवाल ज़िंदा रखो
और खुद से पूछते रहो की
क्या सच है? क्या झूठ है?

                                                                                    - मयंक पांडेय 

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